जी-7 वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों के नेताओं के बीच तब मतभेद खुल कर सामने आ गये जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि रूस को पूर्व G8 समूह से हटाना एक बड़ी गलती थी। हम आपको याद दिला दें कि रूस को 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद समूह से हटा दिया गया था। उसी बात को याद दिलाते हुए ट्रंप ने कहा कि रूस को हटाना एक बड़ी गलती थी। उन्होंने कहा कि आपके दुश्मन को बातचीत की मेज पर होना चाहिए और रूस तो उस समय दुश्मन भी नहीं था।
ट्रंप की यह बात सुन अन्य देशों को अच्छा नहीं लगा क्योंकि अमेरिका को छोड़ कर बाकी सभी यूक्रेन का साथ दे रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ट्रंप के मुँह से बार-बार पुतिन का नाम सुन कर सदस्य देशों का गुस्सा सातवें आसमान पर है लेकिन हालात को देखते हुए सब किसी तरह अपने पर कंट्रोल कर रहे हैं। साथ ही बैठक के शुरुआती संकेत दर्शा रहे हैं कि जी-7 नेताओं के बीच प्रमुख मुद्दों पर सहमति बनाना मुश्किल हो सकता है। ट्रंप जिस तरह अड़ियल रुख लेकर बैठक में आये हैं उससे माना जा रहा है कि इस समूह की यह सालाना कवायद बेकार जायेगी क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति इज़राइल-ईरान संघर्ष को कम करने की अपील वाले मसौदा बयान पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि कनाडा ने एक समग्र साझा बयान जारी करने की योजना को छोड़ दिया है ताकि 2018 के क्यूबेक शिखर सम्मेलन की पुनरावृत्ति से बचा जा सके। हम आपको याद दिला दें कि उस समय ट्रंप ने सम्मेलन छोड़ने के बाद अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल को अंतिम बयान से समर्थन वापस लेने का निर्देश दिया था।
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मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जी-7 नेताओं ने तमाम मुद्दों पर मसौदा दस्तावेज तैयार किये हैं लेकिन अमेरिका ने अभी तक किसी को मंजूरी नहीं दी है। यूरोपीय राजनयिकों ने मीडिया से बातचीत में कहा कि अधिकांश मुद्दों पर यूरोपीय देश एकमत हैं लेकिन ट्रंप की अनिश्चितता के चलते यह स्पष्ट नहीं है कि कोई संयुक्त घोषणा होगी या नहीं। हम आपको बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के पहले पाँच महीनों ने अमेरिकी विदेश नीति को झकझोर कर रख दिया है क्योंकि अमेरिका ने रूस के साथ करीबी संबंध बनाने की इच्छा जताई है और अमेरिकी सहयोगियों पर शुल्क (टैरिफ) लगा दिये गये हैं। इसके अलावा, ट्रंप शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कनाडा तो पहुँच गये हैं लेकिन यहां उनके खिलाफ पहले ही काफी नाराजगी देखी जा रही है क्योंकि उन्होंने कनाडा को अमेरिकी राज्य बनाने की बात कही थी। ट्रंप ने ग्रीनलैंड को भी अपना बनाने की बात कही थी जिसको लेकर उनसे फ्रांस और यूरोपीय देश भी नाराज हैं। हालात यह हैं कि सब लोग साथ तो दिख रहे हैं लेकिन एक दूसरे से मन की दूरी साफ नजर आ रही है।
हम आपको यह भी बता दें कि ट्रंप ने शनिवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करने के बाद सुझाव दिया था कि रूसी नेता इज़राइल और ईरान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस विचार को खारिज करते हुए कहा कि मास्को मध्यस्थ नहीं बन सकता क्योंकि उसने यूक्रेन के खिलाफ अवैध युद्ध शुरू किया है। मैक्रों ने कहा, “G7 का उद्देश्य होना चाहिए कि हम फिर से एकजुट हों, यूक्रेन के लिए संघर्षविराम सुनिश्चित किया जाए जो एक मज़बूत और टिकाऊ शांति की ओर ले जाए और मेरी नज़र में यह देखना ज़रूरी है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप रूस पर अधिक कड़े प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार हैं।”
वहीं एक यूरोपीय राजनयिक ने कहा कि ट्रंप का सुझाव दर्शाता है कि रूस अमेरिका के दिमाग में काफी गहराई से बैठ चुका है। हम आपको बता दें कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदमीर ज़ेलेंस्की और नाटो महासचिव मार्क रूटे भी सम्मेलन में भाग लेने आये हैं। वैसे वार्ता का केंद्रबिंदु अर्थव्यवस्था, व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाना, चीन और मध्य पूर्व के हालात आदि माने जा रहे हैं। देखना होगा कि इस ताकतवर मंच के नेता इन मुद्दों का क्या हल निकालते हैं। वैसे जिस तरह से जी-7 देशों के बीच मतभेद नजर आ रहे हैं उसको देखते हुए इस सम्मेलन से किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद करना बेमानी है। ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका के नेताओं ने यूरोपीय संघ और भारत के साथ मिलकर कनाडा के कनानास्किस रिसॉर्ट क्षेत्र में बैठकें तो शुरू कर दी हैं लेकिन देखना होगा कि क्या यह शिखर सम्मेलन लोकतांत्रिक ताकतों के बीच एकता बहाल करने में सफल हो पाता है?