अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर छऊ गुरु तपन पटनायक ने दी अनूठी प्रस्तुति, नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत की योगिक मुद्राएं

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International Yoga Day | सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 पर राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र के पूर्व निदेशक एवं संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित छऊ गुरु तपन कुमार पटनायक ने एक अनूठी प्रस्तुति दी. उन्होंने छऊ नृत्य और योग के गूढ़ संबंध को रेखांकित करते हुए नृत्य के माध्यम से योगिक मुद्राओं को प्रस्तुत किया. साथ ही छऊ को एक जीती-जागती योगशाला के रूप में दर्शाया.

नृत्य के जरिये विभिन्न मुद्राओं का प्रदर्शन

Chhau dance and yogic postures
नृत्य के जरिये विभिन्न मुद्राओं का प्रदर्शन

उन्होंने छऊ नृत्य के जरिये योग के विभिन्न मुद्राओं को प्रदर्शित किया. “वन अर्थ-वन हेल्थ” की वैश्विक थीम को सार्थक करते हुए छऊ गुरु तपन पटनायक ने स्थानीय कलाकारों के साथ मिलकर छऊ नृत्य की विविध मुद्राओं में योग के अष्टांग स्वरूप को सजीव किया. योग के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पहलुओं को छऊ नृत्य के माध्यम से रेखांकित करते छऊ गुरु तपन पटनायक ने कहा कि छऊ नृत्य में योग निहित है और छऊ नृत्य में योग एक अभिन्न अंग है.

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भारतीय पौराणिक परंपरा की गहराई से जुड़ी हैं छऊ नृत्य की जड़ें

Chhau dancer Tapan Kumar Patnaik
छऊ गुरु तपन कुमार पटनायक

छऊ गुरु तपन पटनायक के अनुसार छऊ नृत्य की जड़ें भारतीय पौराणिक परंपरा में गहराई से जुड़ी हैं. इसे शिव के तांडव रूप से प्रेरित माना जाता है. शिव स्वयं योगीश्वर हैं और योग के आदि स्रोत हैं. छऊ नृत्य में अष्टांग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि) निहित है. छऊ गुरु पटनायक ने बताया कि छऊ नृत्य का आध्यात्मिक आधार अर्धनारीश्वर की अवधारणा है, जहां शिव और शक्ति एकाकार होते हैं. वही समरसता छऊ की शैली में भी दृष्टिगोचर होती है.

ये भी रहे मौजूद

इस दौरान छऊ गुरु तपन पटनायक के साथ कुसमी पटनायक, प्रफुल्ल नायक, ठंगरु मुखी, लक्ष्मी प्रिया दास, सुहाना सिंहदेव, राम महतो, सुखमती नायक, अंबुज महतो और दशरथ महतो प्रमुख उपस्थित रहे. इन सभी कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से योगिक मुद्राओं को प्रस्तुत किया.

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अष्टांग योग और छऊ नृत्य का है संबंध

Chhau dance and yoga
छऊ नृत्य के जरिये योगिक मुद्राएं करते तपन पटनायक

योग के आठ अंगों को यदि गहराई से देखा जाए, तो वे छऊ नृत्य की तकनीक और भाव भंगिमा में सहज रूप से समाहित हैं:

  • यम (नैतिक आचरण) – छऊ नर्तक में संयम, अहिंसा और अपरिग्रह जैसे गुण आवश्यक हैं.
  • नियम (व्यक्तिगत अनुशासन) – प्रतिदिन का अभ्यास, ईश्वर के प्रति समर्पण और तप ही नर्तक की आत्मा होते हैं.
  • आसन (शारीरिक मुद्राएं) – छऊ नृत्य की हर मुद्रा एक योगिक आसन है; संतुलन और लचीलापन दोनों जरूरी हैं.
  • प्राणायाम (श्वास पर नियंत्रण) – नृत्य के दौरान सांस की गति पर नियंत्रण और तालमेल अनिवार्य है.
  • प्रत्याहार (इंद्रियों पर नियंत्रण) – मंच पर भाव की गहराई में उतरने के लिए इंद्रियों का संयम आवश्यक है.
  • धारणा (एकाग्रता) – छऊ में मुद्राओं और कथा के भावों पर गहन ध्यान देना पड़ता है.
  • ध्यान (एक लक्ष्य पर मन का केंद्रित होना) – संगीत, ताल, अभिनय और शारीरिक संयोजन को ध्यानपूर्वक एक साथ साधना होता है.
  • समाधि (ध्यान की पराकाष्ठा) – जब नर्तक मंच पर पूरी तरह शिव के भाव में विलीन हो जाता है, वहीं छऊ की योगिक चरम स्थिति होती है.

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