बोइंग ने चीन को 787-9 विमान दिया:अहमदाबाद विमान हादसे के दो दिन बाद डिलीवरी दी, प्लेन क्रैश 275 लोगों की मौत हुई थी

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अहमदाबाद विमान हादसा के दो दिन बाद ही अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोइंग ने चीन को विमान की डिलीवरी फिर से शुरू कर दी है। चीनी मीडिया के अनुसार, बोइंग ने शनिवार को जुनयाओ एयरलाइंस को एक नया 787-9 विमान सौंपा। गुरुवार (14 जून) को अहमदाबाद में बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में 275 लोगों की मौत हो गई थी। उड़ान भरने के तुरंत बाद प्लेन क्रैश हो गया था। बोइंग और जुनयाओ एयरलाइंस ने इस डिलीवरी पर टिप्पणी करने से इनकार किया है। इसके अलावा 9 जून को शियामेन एयरलाइंस के लिए एक बोइंग 737 मैक्स विमान भी चीन पहुंचा। इससे लगता है कि बोइंग अब चीन में अपनी डिलीवरी सामान्य कर रहा है। मई में चीन ने विमान खरीदी पर लगाई थी रोक
एक महीने पहले चीन ने अपनी एयरलाइन कंपनियों को बोइंग से नए विमानों की डिलीवरी नहीं लेने के आदेश दिए थे। चीनी सरकार ने यह आदेश अमेरिका के 145% टैरिफ के जवाब में दिया था। अमेरिका में बनने वाले विमान के पार्ट्स की खरीद रोकने का आदेश भी दिया था। हाल ही में दोनों देशों के बीच लंदन में दो दिन की बातचीत हुई, जिसमें टैरिफ दरों पर एक समझौता हुआ। बोइंग के लिए चीन एक महत्वपूर्ण बाजार
कोरोना महामारी से पहले, बोइंग के लगभग एक तिहाई 737 विमान देश में डिलीवर किए जा रहे थे। बोइंग के अनुमान के अनुसार, अगले दो दशकों में, चीन ग्लोबल एयरप्लेन डिमांड का 20% हिस्सा होगा। इसका मतलब है कि चीन को… भारत को मिल सकते थे विमान, अब चीन को ही मिलेंगे
अप्रैल 2025 में जब चीन ने बोइंग डिलीवरी रोकी थी, तब एयर इंडिया ने इन विमानों को खरीदने में रुचि दिखाई थी, क्योंकि उसे अपनी ग्रोथ और इंडिगो से प्रतिस्पर्धा के लिए तत्काल विमानों की जरूरत थी।
हालांकि, अब बैन हटने के बाद चीनी एयरलाइनों ने डिलीवरी स्वीकार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसलिए, एयर इंडिया को इन 50 विमानों की डिलीवरी मिलने की संभावना कम है, क्योंकि बोइंग पहले से बुक किए गए ऑर्डर को प्राथमिकता देगी। 1916 में विलियम ई. बोइंग ने बनाई थी कंपनी
अमेरिकी बिजनेसमैन विलियम ई. बोइंग ने 1916 में विलियम ई. बोइंग ने एयरो प्रोडक्ट्स नाम से अमेरिका में कंपनी बनाई थी। एक साल के अंदर ही 1917 में पहला प्लेन बना दिया और कंपनी का नाम बदलकर बोइंग कर दिया था। ये वो समय था जब वर्ल्ड वॉर-1 की शुरुआत हो चुकी थी। यूरोप- ब्रिटेन और जर्मनी के मुकाबले अमेरिका प्लेन टेक्नोलॉजी में काफी पीछे था। वर्ल्ड वॉर के कारण प्लेन की डिमांड बढ़ी। कंपनी को प्लेन तैयार करने के 50 ऑर्डर मिले और यहीं से बोइंग का आसमानी सफर शुरू हुआ।
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