Bihar, बिक्रम उपाध्याय: यूं तो विधानसभा के हर चुनाव राष्ट्रीय राजनीति को हमेशा प्रभावित करते रहे हैं, लेकिन इस बिहार विधानसभा का चुनाव परिणाम केंद्र सरकार का भविष्य तय करने में बहुत अहम भूमिका निभाने वाला है. खासकर प्रधानमंत्री मोदी के लिए बिहार एक लिटमस बनने वाला है. इस चुनाव में गरीबी, बेरोजगारी, सरकारी नौकरी जैसे मुद्दे तो रहेंगे ही, लेकिन सबसे मुद्दा यह रहने वाला है कि बिहार एनडीए के साथ रहने वाला है कि इंडिया गठबमधन के साथ. परिणाम चाहे जो भी हो इतना तो तय है कि बिहार से एक बार फिर नए राजनीतिक खेमेबंदी शुरू होने वाली है. यूपी, महाराष्ट्र और बंगाल के बाद बिहार ही चौथा सबसे बड़ा राज्य है जहां से देश की राजनीतिक स्थिरता का मार्ग खुलता है. 40 लोक सभा सीटों वाला बिहार बीजेपी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी बिहार विधानसभा चुनाव जीतने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.
- ब्रांड मोदी के नाम पर राजद से भिड़ने की तैयारी में बीजेपी
- हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह बिहार को जीतना चाहती है पार्टी
- हिंदू वोटरों पर है पार्टी की नजर
- बीजेपी के सामने है नेतृत्व स्थापित करने की चुनौती
- नेतृत्व को लेकर गंभीर है पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह
- बीजेपी आलाकमान के करीब हैं मंगल पांडे
- पर्दे के पीछे अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं पांडे
- बिहार में सफल रहा है ब्राह्मण नेतृत्व
ब्रांड मोदी के नाम पर राजद से भिड़ने की तैयारी में बीजेपी
बिहार में लोग मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की एक लंबी पारी देख चुके हैं, इसलिए जनता अब उनसे किसी बड़े परिवर्तन की आशा नहीं कर रही है. बाहरी तौर पर बीजेपी भले ही नीतीश के नेतृत्व पर कोई संशय नहीं दिखा रही है, लेकिन आंतरिक तौर पर भाजपा इस बात की तैयारी में लग गई है कि ब्रांड मोदी के नाम पर चुनावी अखाड़े में उतरा जाए और राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन से सीधे भिड़ा जाए. भाजपा के पास नए दांव पेंच के लिए पर्याप्त मसाला है भी. लालू युग के कुशासन की याद दिलाने का दांव बीजेपी हर चुनाव में लगाती है, और इसके कारण ही 10 प्रतिशत ऊंची जातियों का वोट प्राप्त कर लेती है. लालू के राज में अन्य पिछड़े वर्ग को भी बहुत तकलीफें झेलनी पड़ी थी, इसलिए उन्हें भी अपने पाले में करने में एनडीए को विशेष दिक्कत नहीं होती. कथित जंगल राज में सबसे ज्यादा उत्पीड़न महिलाओं का हुआ था, यह मुद्दा भी बिहार के हर चुनाव में बीजेपी या एनडीए के पक्ष में चला जाता है. गैर यादव ओबीसी और दलित जातियों को लुभाने के लिए बीजेपी ने कई घेरेबंदी की है. आरजेडी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में अभी भी यादवों और मुसलमानों की पार्टी की पहचान से अलग नहीं हो सकी है. एनडीए के पक्ष में यह भी जाता है.
हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह बिहार को जीतना चाहती है पार्टी
बीजेपी हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में शानदार जीत को बिहार में भी दुहराना चाहती है. इसलिए इस बार अधिकतम सीटें जीतने की संभावना पर काम कर रही है. यही कारण है कि भाजपा के सभी बड़े नेता बिहार में डेरा डालने की तैयारी कर चुके हैं. बीजेपी 243 सीटों की विधान सभा चुनाव में सीट आवंटन और गठबंधन पर फूंक फूंक कर फैसले ले रही है. बिहार में बीजेपी के पास कहने को बहुत कुछ है, विकास और सुशासन का ढोल भी पीटा जाएगा, लेकिन बीजेपी और एनडीए की सफलता मोदी फैक्टर पर टिका हुआ है. पीएम मोदी की लोकप्रियता ही एनडीए के लिए प्राणवायु रहने वाली है, क्योंकि अभी तक हर सत्ता विरोधी लहर की काट मोदी ही बने हैं.
हिंदू वोटरों पर है पार्टी की नजर
अन्य दलों की तरह बीजेपी और एनडीए के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती जाति संरचना के हिसाब से नेता और जनता को अपने पाले में लाने की है. राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी 27.1286% है, जबकि अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) 36.0148% है. अनुसूचित जाति की संख्या आबादी का 19.6518% है, जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी केवल 1.6824% है. सामान्य जाति की आबादी इस समय 15.5224% है. लेकिन मोदी ने अपनी नीतियों से जातिगत समीकरणों के फार्मूले को बदल दिया है, वह सफलता पूर्वक महिलाओं, युवकों, बेरोजगारों और किसानों के रूप में जातियों को नई पहचान देने में जुटे हैं. प्रधानमंत्री हिंदुओं की कुल 81.9 फीसदी आबादी को सीधे लक्षित करते हैं और यह प्रयोग सफलतापूर्वक आजमा भी चुके हैं. बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी का 17.70% हैं और उनमें से एनडीए के लिए कुछ वोट प्राप्त करने की सारी जिम्मेदारी अन्य घटक दलों के ऊपर छोड़ दिए हैं.
बीजेपी के सामने है नेतृत्व स्थापित करने की चुनौती
प्रधानमंत्री मोदी के सामने एक और बड़ा टास्क बिहार में नेतृत्व निर्माण को लेकर भी है. सुशील मोदी के देहांत के बाद बिहार में बीजेपी को नेतृत्व देने वाला कोई नेता उभर कर सामने नहीं आया है. समय समय पर जितने भी प्रयोग किए गए, वे बहुत सफल नहीं हुए हैं. राष्ट्रीय राजनीति में राजीव प्रताप रूढ़ी या रविशंकर प्रसाद जैसे कुछ नाम जरूर चमकते हैं, लेकिन बिहार के सर्वमान्य नेता के रूप में बीजेपी का कोई चेहरा अभी नजर नहीं आता. विजय सिन्हा और सम्राट चौधरी के रूप में दो नेताओं को बीजेपी ने उपमुख्यमंत्री बनाकर नेतृत्व उभारने की कोशिश की है, लेकिन यह बहुत सफल होता दिखाई नहीं दे रहा है. आरजेडी के तेजस्वी को सीधे चुनौती देने वाले बीजेपी नेता की तलाश पीएम और शीर्ष नेतृत्व को अब भी है. नित्यानंद राय भी एक काबिल बीजेपी नेता माने जाते है, और वे गृह मंत्री अमित शाह के विश्वासपात्र भी माने जाते हैं, लेकिन बिहार में कहा जाता है कि यादव यदि किसी को अपना नेता मानते हैं तो वह सिर्फ लालू यादव हैं.
नेतृत्व को लेकर गंभीर है पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह
जब से मोदी और अमित शाह का बीजेपी में एकछत्र नेतृत्व कायम हुआ है, तब से पार्टी नए नेतृत्व के लिए लीक से हट कर कई सफल प्रयोग किये और सफलता भी प्राप्त की है. हरियाणा से मनोहर लाल खट्टर और नायब सिंह सैनी, त्रिपुरा से विप्लव देव, राजस्थान से भजन लाल शर्मा और मध्य प्रदेश से मोहन यादव जैसे कई नेतृत्व सामने आए हैं, जो नेपथ्य में रह कर काम कर रहे थे. क्या बिहार में भी कुछ ऐसा हो हो सकता है. इस बात की बहुत चर्चा है कि इस बार एनडीए के सत्ता में आने के बाद भी नीतीश एक और बार मुख्यमंत्री बनने से इनकार कर दे, ऐसे में यह संभावना बनती है कि ज्यादा सीटें जीतने के बाद मुख्यमंत्री भाजपा का हो. शायद बीजेपी अभी से इसकी तैयारी भी कर रही है. कार्यकर्ताओं में इसका संदेश भी से ही पहुंचने लगा है. प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी के सदस्य बनियापुर के स्तनीय बीजेपी नेता आनंद शंकर कहते हैं- क्यों नहीं, बीजेपी 20 राज्यों में सरकार चल रही है, बिहार में भी सरकार का मुखिया भाजपा से ही होना चाहिए.
बीजेपी आलाकमान के करीब हैं मंगल पांडे
बिहार में नेतृत्व का फैसला पीएम मोदी की सलाह से ही होना है, लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं, उसके अनुसार बीजेपी भी जातिगत उलझनों से बचने के लिए किसी ऐसे वर्ग को नेता बना सकती है, जिस वर्ग को लेकर कोई पूर्वाग्रह लोगों के मन में ना हो. देखा जा रहा है कि इन दिनों बिहार की सियासत में ब्राह्मण समाज के नेताओं को आजमाया जा रहा है. केवल बीजेपी में ही नहीं आरजेडी में भी मनोज झा जैसे ब्राह्मण नेता का कद बढ़ाया गया है. जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा भी ब्राह्मण समाज से ही है. बीजेपी ने भी मनन कुमार मिश्र के रूप में एक ब्राह्मण नेता को राज्य सभा भेजा है. बिहार बीजेपी ने भी मंगल पांडे के रूप में एक ब्राह्मण नेता को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है. मंगल पांडे 2017 से लगातार बिहार के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में काम कर रहे हैं. स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने की जीममदारी उन्हीं के पास है और शीर्ष भाजपा नेतृत्व लगातार उन पर भरोसा भी कर रहा है. भाजपा के भीतर मंगल पांडे की पहचान नेतृत्व से नजदीकी नेता के रूप में है. विशेष रूप से COVID-19 महामारी के दौरान उनकी छवि एक योग्य प्रशासक के रूप में सामने आई.
पर्दे के पीछे अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं पांडे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 जून को सिवान जा रहे हैं, जो कि मंगल पांडे का राजनीतिक क्षेत्र है. खबर यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी इस दौरान 9,519 करोड़ रुपये की विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास भी करेंगे. बिहार बीजेपी में अपेक्षाकृत युवा नेता मंगल पांडे राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी भूमिका निभा चुके हैं. उन्हें पिछले पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में बीजेपी का प्रभारी बनाया गया था. वह बिहार बीजेपी के अध्यक्ष के रूप में भी काम कर चुके हैं. आनंद शंकर का कहना है कि बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उनका शानदार काम उन्हें बड़ी जिम्मेदारी के लिए न्यायोचित ठहराता है.
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बिहार में सफल रहा है ब्राह्मण नेतृत्व
बिहार में ब्राह्मण नेतृत्व का प्रयोग काफी सफल भी रहा है. 1961 से 1990 तक बिहार में पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्री हुए और सामाजिक सौहार्द भी बना रहा, लेकिन हकीकत यह भी है कि मंडल की राजनीति ने बिहार को एक नए मंच पर ला दिया, ओबीसी की राजनीति सत्ता की धुरी बन गई. लेकिन तीन दशक की जातिगत राजनीति बिहार की तकदीर और तस्वीर बदलने में सफल नहीं हो सकी. खास तौर पर दलित और पिछड़े वर्ग के लोग अभी भी बुरे हालत में हैं. क्या मोदी इस बार बिहार में एक नए परिवर्तन का वाहक बनेंगे. (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं और यह उनके निजी विचार है)
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