जामा मस्जिद हिंसा केस में बड़ा धमाका: सपा सांसद पर चार्जशीट, मस्जिद में मंदिर के सबूत से मचा बवाल!

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Temple Evidence In Mosque: 24 नवंबर 2024 को उत्तर प्रदेश के एक संवेदनशील इलाके में स्थित जामा मस्जिद के बाहर उस समय बवाल मच गया था जब वहां मंदिर होने का दावा करते हुए कोर्ट के आदेश पर दोबारा सर्वेक्षण किया गया. इसी विरोध के दौरान हिंसा भड़क गई थी जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 30 से अधिक पुलिसकर्मी और अधिकारी घायल हो गए थे.

अब इस मामले में बुधवार को पुलिस ने बड़ा कदम उठाते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और मस्जिद कमेटी के सदर जफर अली एडवोकेट समेत कुल 22 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है. करीब 1100 पन्नों की यह चार्जशीट कोर्ट में सौंपी गई है.

सांसद पर लोगों को उकसाने और झूठे साक्ष्य देने का आरोप

चार्जशीट में यह साफ कहा गया है कि सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने लोगों को हिंसा के लिए भड़काया और माहौल को खराब करने का प्रयास किया. इसके अलावा, मस्जिद कमेटी के सदर जफर अली पर भी हिंसा भड़काने और पुलिस के समक्ष गलत एवं भ्रामक साक्ष्य प्रस्तुत करने का आरोप लगाया गया है.

हालांकि, इसी केस में नामजद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक इकबाल महमूद के बेटे सुहैल इकबाल को क्लीन चिट दे दी गई है. पुलिस जांच में उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिले.

12 मुकदमे, 10 में पहले ही चार्जशीट दाखिल

24 नवंबर की घटना के बाद पुलिस और आमजन की ओर से कुल 12 एफआईआर दर्ज कराई गई थीं. इनमें से 7 मुकदमे पुलिस की ओर से, जबकि 4 मृतकों के परिजनों और 1 घायल व्यक्ति के परिजन की ओर से दर्ज कराए गए थे.

इनमें से 10 मामलों में पुलिस पहले ही चार्जशीट दाखिल कर चुकी थी. बुधवार को दाखिल की गई ताजा चार्जशीट 11वां मुकदमा है. पुलिस का कहना है कि शेष एक मामले में भी जल्द ही चार्जशीट दाखिल कर दी जाएगी.

700-800 अज्ञात लोगों को भी किया गया नामजद

पुलिस की ओर से दर्ज एक अहम एफआईआर में सपा सांसद और विधायक के बेटे के साथ-साथ 700 से 800 अज्ञात लोगों को भी हिंसा का आरोपी बनाया गया था. इसके अतिरिक्त, मस्जिद कमेटी के सदर जफर अली एडवोकेट को जांच के दौरान नाम सामने आने पर गिरफ्तार किया गया था.

सांसद बर्क को फिलहाल हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर रोक (स्टे) मिली हुई है. पुलिस ने उनसे 8 अप्रैल को चार घंटे तक पूछताछ की थी.

कोर्ट का आदेश बना हिंसा की वजह

हिंसा की जड़ें 19 नवंबर 2024 को उस वक्त पड़ीं जब सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में एक याचिका दाखिल की गई जिसमें दावा किया गया था कि जामा मस्जिद असल में हरि हर मंदिर है. कोर्ट ने उसी दिन अधिवक्ता रमेश राघव को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किया था.

एडवोकेट कमिश्नर ने उसी दिन सर्वे शुरू भी किया, लेकिन भारी भीड़ और विरोध के चलते उन्हें लौटना पड़ा. इसके बाद जब 24 नवंबर को दोबारा सर्वे किया गया, तब स्थिति बिगड़ गई और माहौल हिंसक हो गया.

मस्जिद में मंदिर होने के साक्ष्य मिलने की रिपोर्ट

इस सर्वे की रिपोर्ट 2 जनवरी 2025 को अदालत में दाखिल कर दी गई थी, जिसमें यह उल्लेख किया गया कि मस्जिद परिसर में मंदिर होने के “प्रारंभिक साक्ष्य” मिले हैं. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद धार्मिक और राजनीतिक रूप से विवाद और अधिक गहरा गया.

एक और चार्जशीट जल्द दाखिल होगी: एसपी

मामले की गंभीरता को देखते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार बिश्नोई ने बताया कि पुलिस द्वारा दर्ज एक अन्य केस में भी जल्द ही चार्जशीट दाखिल की जाएगी. उन्होंने कहा कि सभी सबूतों और गवाहों के बयान के आधार पर पुलिस पूरी निष्पक्षता से जांच कर रही है.

जामा मस्जिद हिंसा मामला अब कानूनी रूप से निर्णायक मोड़ पर है. एक ओर जहां सपा सांसद को आरोपित बनाया गया है, वहीं मस्जिद में मंदिर होने के दावे और सर्वे की रिपोर्ट ने पूरे मामले को और गंभीर बना दिया है. आगे की सुनवाई और चार्जशीट की स्थिति पर नजर बनी रहेगी, क्योंकि यह मामला राजनीति, धर्म और कानून के त्रिकोण पर टिका हुआ है.

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