पाकिस्तान ने निभाया वादा, ट्रंप के नोबेल नामांकन की सिफारिश की

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Donald Trump Nominated for Nobel: पाकिस्तान सरकार ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए औपचारिक रूप से नामांकित किया है. पाकिस्तान का कहना है कि ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच 2025 में बढ़े सैन्य तनाव को कम करने में एक निर्णायक भूमिका निभाई, जिससे दोनों परमाणु शक्तियों के बीच संभावित युद्ध टल गया. इस कदम को पाकिस्तान द्वारा “क्षेत्रीय शांति के लिए ट्रंप की प्रतिबद्धता” के रूप में प्रस्तुत किया गया है.

सरकारी बयान में कहा गया कि ट्रंप के “पर्दे के पीछे हुए कूटनीतिक हस्तक्षेप” ने दक्षिण एशिया को एक बड़े सैन्य संकट से बचा लिया. पाकिस्तान सरकार ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा कि राष्ट्रपति ट्रंप का “नेतृत्व और मध्यस्थता” दोनों देशों को बातचीत की मेज तक लाने में सहायक साबित हुए, इसलिए उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए भेजा गया है.

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यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से 18 जून को वाइट हाउस में मुलाकात हुई थी. व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अन्ना केली ने इस बात की पुष्टि की थी कि मुनीर को आमंत्रित करने से पहले पाकिस्तान ने ट्रंप को नोबेल के लिए नामांकित करने की प्रतिबद्धता जताई थी. ट्रंप ने भी इस बैठक के बाद दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को रोका और यह कार्य “नोबेल पुरस्कार” के लायक है.

हालांकि भारत ने इन दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया है. विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने साफ किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम पूरी तरह सैन्य अधिकारियों के द्विपक्षीय संवाद से हुआ और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्रंप से फोन पर बातचीत में यही बात दोहराई.

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इस बीच, ट्रंप ने मीडिया से बात करते हुए यह भी कहा कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार कई बार मिलना चाहिए था, न कि सिर्फ भारत-पाक शांति प्रयासों के लिए, बल्कि अफ्रीका और बाल्कन में शांति बहाल करने के लिए भी. हालांकि, ट्रंप के नामांकन की वैधता पर सवाल उठे हैं, क्योंकि नोबेल शांति पुरस्कार की सिफारिश करने का अधिकार केवल सीमित वर्ग को है, जिसमें संसद सदस्य, सरकार के प्रमुख अधिकारी और पूर्व विजेता शामिल होते हैं. सेना प्रमुख असीम मुनीर स्वयं योग्य नहीं माने जाते, लेकिन यदि यह नामांकन पाकिस्तान सरकार की ओर से है तो इसे वैध माना जा सकता है. नोबेल समिति इस तरह के नामांकनों पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करती और 50 वर्षों तक नामों को गोपनीय रखा जाता है.

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