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Emergency in Jharkhand : 12 जून 1975 को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया, तो देश में इमरजेंसी लागू होने का यह तात्कालिक कारण बना. 25 जून 1975 की मध्यरात्रि को देश में राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर देश में पहली बार इमरजेंसी यानी आपातकाल लगाने की घोषणा की. उस वक्त यह कहा गया था कि देश में षडयंत्र रचे जा रहे हैं. सेना और पुलिस को बरगलाया जा रहा है, अराजकता की स्थिति बनाने की कोशिश की जा रही है इसलिए सरकार ने देशहित में इमरजेंसी लागू किया है.
इमरजेंसी की घोषणा से पूरे देश के साथ झारखंड में भी था डर का माहौल
26 जून की सुबह आठ बजे जब देश में इमरजेंसी यानी आपातकाल की घोषणा हुई, तो पूरा सन्न रह गया था. विपक्ष के सभी बड़े नेताओं जिनमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राज नारायण शामिल थे उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. उस वक्त के माहौल की चर्चा करते हुए जेपी आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले वरिष्ठ पत्रकार अशोक वर्मा ने बताया कि जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की, तो मैं उसे सुन नहीं पाया था, क्योंकि मैं एक शादी समारोह में व्यस्त था. सुबह नौ बजे जब बाजार गया, तो पता चला कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है. सभी इस बात को लेकर चिंतित थे कि आगे क्या होगा क्योंकि विपक्ष के बड़े नेता गिरफ्तार हो चुके थे और उस समय जयप्रकाश नारायण का बड़ा सम्मान था. मैंने जब यह बात सुनी, तो आक्रोशित हो गया और सीधे अपने काॅलेज पहुंचा.
झारखंड के झुमरीतिलैया में आक्रोशित छात्रों ने जलाया था थाना

इमरजेंसी की घोषणा के बाद छात्र आंदोलन से जुड़े युवा नेता आक्रोशित हो गए थे. अशोक वर्मा बताते हैं कि जगन्नाथ काॅलेज झुमरीतिलैया से 100-150 लड़के प्रदर्शन करने के लिए सड़क पर निकल गए. मैं उस वक्त सिर्फ 18 साल का था, हमने दुकानों को बंद कराया और फिर नारेबाजी करते हुए तिलैया थाने के करीब पहुंच गए. वहां पर पुलिस ने हमें रोक दिया. पुलिस ने कहा कि आपको मालूम नहीं है कि देश में आपातकाल लगा हुआ है, प्रदर्शन की इजाजत नहीं मिलेगी. तब छात्रों की भीड़ के साथ पुलिस की भिड़ंत हुई और छात्रों ने थाने में आग लगा दी थी. हालांकि आग पर तुरंत काबू पा लिया गया था. पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया था, जिससे छात्र वहां से भाग गए थे. जिस तरह की घटनाएं हुईं थी, मुझे यह पक्का यकीन हो गया था कि गिरफ्तारी तो होगी, इसलिए मैं घर नहीं गया था.
शाम को डर से घरों में दुबक जाते थे लोग
इमरजेंसी की घोषणा के बाद इतनी गिरफ्तारियां हुईं कि लोग शाम होते ही अपने काम निपटाकर घरों में दुबक जाते थे, हालांकि इस तरह का कोई आदेश जारी नहीं हुआ था कि शाम को घर से नहीं निकलना है. लेकिन आम आदमी दहशत में था और डर की वजह से ही वे घरों में बंद हो जाते थे.अशोक वर्मा बताते हैं कि उस दौर में स्थिति यह थी कि अगर लोग मिलते थे, तो कोई राजनीतिक बातचीत नहीं होती थी. आपातकाल पर तो कोई चर्चा ही नहीं की जाती थी. मेरी गिरफ्तारी 30 जून को DIR ( Defence of Rule) के तहत हुई थी.रक्षा नियमों की सुरक्षा के लिए इस एक्ट के तहत गिरफ्तारी होती थी. एक बात है जो बताने लायक है कि उस वक्त बिहार पुलिस के मन में आंदोलन के लिए समर्थन था, इसी वजह से जब मेरी गिरफ्तारी हुई, तो एक पुलिस अधिकारी ने जानबूझकर मेरे पिताजी का नाम गलत लिखा और मुझे सलाह दिया कि जब कोर्ट में पेशी हो तब कह देना कि मैं वो अशोक वर्मा नहीं हो इससे तुम्हें जल्दी जमानत मिल जाएगी. ऐसा हुआ भी, मेरी गिरफ्तारी जून में हुई थी और सितंबर में मैं जमानत पर रिहा हो गया.
आंदोलनकारियों से बात करने में आम जनता डरती थी
आपातकाल के दौरान इस तरह का माहौल बना दिया गया था कि आंदोलनकारियों से बात करने में लोग डरते थे. उन्हें इस बात का भय सताता था कि अगर वे आंदोलनकारियों से संपर्क में रहेंगे, तो सीआईडी के लोग उन्हें भी गिरफ्तार करके जेल में डाल देंगे. आंदोलनकारी अशोक वर्मा अपनी आपबीती बताते हैं कि जब जमानत पर रिहा होने के बाद वे गिरफ्तारी से बचने के लिए छुप रहे थे, तो पटना अपने एक रिश्तेदार के घर पहुंचे. दरवाजा खोलते ही उनके रिश्तेदार भड़क गए कि आप यहां क्यों आए हैं. अशोक वर्मा ने उन्हें बताया कि वे गिरफ्तारी से बचना चाह रहे हैं, इसपर उनके रिश्तेदार ने उन्हें अपने घर में रखने से मना कर दिया और उनसे चले जाने को कहा. तब अशोक वर्मा ने उनसे कुछ पैसे मांगे और उनके द्वारा 300 रुपए देने के बाद वे पटना के विभिन्न होटलों में रहे. 18 मार्च 1976 को जब अशोक वर्मा अपने साथियों के साथ झुमरीतिलैया के झंडा चौक पर प्रदर्शन कर रहे और काला झंडा लेकर नारेबाजी कर रहे थे, तो उनकी गिरफ्तारी हुई और उन्हें हजारीबाग जेल में रखा गया.
हजारीबाग जेल की क्या थी स्थिति
इमरजेंसी के समय हजारीबाग जेल में कई बड़े नेता कैद करके रखे गए थे. उन्हें मीसा (MISA – Maintenance of Internal Security Act) के तहत गिरफ्तार किया गया था. इनमें जेपी, जाॅर्ज फर्नांडिस,लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजेपी और शिवानंद तिवारी जैसे नेता भी शामिल थे. अशोक वर्मा बताते हैं कि मैं 18 मार्च 1976 से इमरजेंसी की समाप्ति तक जेल में रहा था. देश में आपातकाल 18 जनवरी 1977 को समाप्त हुआ था. हमारे साथ हजारीबाग जेल में राजनीतिक बंदी जैसा ही व्यवहार किया गया था. हमारे कई विचारधारा के लोग थे, जिनमें आरएसएस, जमाते इस्लामी के लोग भी थे और हम उनसे चर्चा करते थे. बड़े नेताओं में डाॅ रामजी सिंह हमारे साथ कैद थे, जो हमें काफी शिक्षित करते थे. हमने उनसे बहुत कुछ सीधा था. उन वक्त आंदोलनकारियों के दिन की शुरुआत शौच साफ करने से होती थी, क्योंकि उस काल में शौचालयों में सैप्टिक टैंक नहीं होता था, तो शौच की सफाई खुद करनी होती थी. हमें यह पता चला था कि कैदियों में से जो दलित और आदिवासी होते थे उनसे जबरन यह काम कराया जाता था, तब हमने खुद सफाई करने का बीड़ा उठा लिया था और सभी आंदोलनकारी इस काम में जुट जाते थे. आंदोलन से जुड़े कुल 600 लोग हजारीबाग जेल में बंद थे, जिन्हें छह वार्ड में बांटकर रखा गया था और उन्हें आपस में मिलने नहीं दिया जाता था. जब कोई बाहर से मिलने आता था, तब ही कैदियों को वार्ड से निकाला जाता था. हां यह बात सही है कि हमें जेल में खाने-पीने और जीवन की बुनियादी चीजों से वंचित नहीं किया गया था.
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